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शेयर मार्केट में आईपीओ क्या होता है? निवेशक कैसे उठाएं इसका फायदा?

Share Market IPO
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पिछले कुछ समय में शेयर बाजार में निवेश को लेकर आम लोगों में जागरूकता बढ़ी है। बात जब शेयर बाजार में निवेश की आती है, तो आप आईपीओ में भी पैसा लगाकर पैसा कमा सकते हैं। हालांकि, आईपीओ में भी पैसा लगाना शेयर बाजार में पैसा लगाने जितना ही जोखिम भरा होता है। इसलिए आईपीओ में पैसे लगाने से पहले उसके बारे में जानना जरूरी होता है।

आईपीओ (IPO) क्या होता है:

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग को ही संक्षेप में आईपीओ कहते हैं। हिन्दी में इसका मतलब होता है आरंभिक या प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम। इसके तहत आईपीओ लाने वाली कंपनी पहली बार अपनी हिस्सेदारी यानी अपने शेयर को सार्वजनिक तौर पर आम लोगों को बिक्री करके पूंजी जुटाती है। कंपनी जितना शेयर सार्वजनिक तौर पर बेचती है, बाद में उतने शेयर स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध हो जाते हैं। स्टॉक मार्केट में आईपीओ लाने वाली कंपनी के शेयरों की कीमत बाजार भाव से तय होती है, जबकि आईपीओ स्तर पर कीमत का फैसला कंपनी करती है। आईपीओ निजी कंपनी, सरकारी कंपनी, नई कंपनी, पुरानी कंपनी, बड़ी कंपनी, मंझोली कंपनी या छोटी कंपनी कोई भी ला सकती है।

हालांकि, इसके लिए आईपीओ लाने वाली कंपनी को तय लिखित नियम-कानून और शर्तों का पालन करना होता है। आईपीओ के संबंध में नियम-कानून और शर्त शेयर मार्केट नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI – Security Exchange Board Of India ) तय करती है। सेबी की स्थापना 12 अप्रैल 1988 में हुई थी। इसको वैधानिक मान्यता 30 जनवरी 1992 को सेबी अधिनियम 1992 के तहत दी गई।

आसान शब्दों में कहें तो आईपीओ लाने वाली कंपनी पूंजी बाजार से पैसे जुटाती है और शेयर बाजार में लिस्ट होती है, जबकि निवेशक आईपीओ पैसे लगाकार मालामाल बन सकते हैं। आईपीओ को प्राथमिक बाजार कहा जाता है, जबकि स्टॉक मार्केट को द्वितीय बाजार।

आईपीओ लाने का उद्देश्य:

1) शेयर बाजार में लिस्ट होना, ताकि आईपीओ लाने वाली कंपनी की अच्छी ब्रांडिंग हो सके। 

2) पूंजी बाजार(stock market) से पैसा जुटाना, जिसका इस्तेमाल कर्ज चुकाने, कारोबार को बढ़ाने, और कंपनी के कामकाजी खर्चों को पूरा करने के लिए किया जा सके।

3) आईपीओ लाने वाली कंपनी के प्रोमोटर्स और मौजूदा शेयरहोल्डर्स का शेयर बेचकर उनको उनके निवेश और मुनाफे का पैसा देना। इसे ऑफर फॉर सेल यानी ओएफएस कहते हैं।

कुछ आईपीओ पूरा का पूरा ओएफएस होता है(Ofs –Offer for sale), कुछ में केवल नए शेयर बिक्री(fresh offer) के लिए जारी किये जाते हैं और कुछ आईपीओ में ओएफएस भी होता है और बिक्री के लिए नए शेयर भी जारी किए जाते हैं।

आईपीओ लाने की पूरी प्रक्रिया:

आईपीओ लाने के लिए आईपीओ लाने की इच्छुक कंपनी को मार्केट रेगुलेटर सेबी को आवेदन देना होता है। इस आवेदन को तकनीकी भाषा में डीआरएचपी (ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रोस्पेक्ट्स DRHP) कहा जाता है। सेबी उस आवेदन की जांच करती है। अगर जांच के दौरान आवेदन में दी गई जानकारी आईपीओ से संबंधित मौजूदा नियम-कानून और शर्तों पर खरी उतरती है, तो उस आईपीओ को सेबी का ऑब्जर्वेशन मिलता है यानी आईपीओ को हरी झंडी मिल जाती है।

सेबी से आईपीओ की मंजूरी मिलने के बाद आईपीओ शेयर्स की स्टॉक मार्केट पर लिस्टिंग तक की पूरी जिम्मेदारी आईपीओ लाने वाली कंपनी की होती है। कंपनी को आईपीओ में आवेदन करने की तारीख (खुलने और बंद होने की तारीख), आईपीओ की तयशुदा कीमत या कीमत का दायरा, आईपीओ अलॉटमेंट की तारीख, आईपीओ अलॉट नहीं होने पर निवेशकों के पैसे रिफंड की तारीख, आईपीओ शेयर्स की लिस्टिंग की तारीख बगैरह की घोषणा करनी होती है।   

निवेशकों के लिए आईपीओ का मतलब:

निवेशक आईपीओ में पैसे लगाकर पैसा कमा सकते हैं। लेकिन, किसी भी आईपीओ में पैसे लगाने से पहले उस आईपीओ और आईपीओ लाने वाली कंपनी के बारे में खुद से पता करें। किसी सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने से बचें।

किसी भी आईपीओ के बारे में पूरी जानकारी मार्केट रेगुलेटर सेबी और स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट से मिलेगी। कई एक्सचेंज की वेबसाइट पर आईपीओ को लेकर समर्पित सेक्शन होते हैं। यहां आपको आने वाले आईपीओ और आईपीओ प्रोस्पेक्ट्स भी मिल जाएगा। इसके अलावा, शेयर बाजार एग्रीगेटर, शेयर ब्रोकर, शेयर बाजार की जानकारी देने वाली वेबसाइट्स और ब्लॉग पर भी आईपीओ के बारे में पढ़ सकते हैं। 

कंपनी के डीआरएचपी में आईपीओ के बारे में विस्तार से जानकारी दी हुई रहती है। इसे ऑफर डॉक्यूमेंट भी कहा जाता है। इसे आईपीओ लाने वाली कंपनी के लिए इन्वेस्टमेंट बैंकर्स तैयार करते हैं। इसी डॉक्यूमेंट में कंपनी की वित्तीय और संचालन संबंधी जानकारी मिल जाती है, जिसके लिए कंपनी पैसे जुटाने की कोशिश कर रही है।

आरएचपी यानी रेड हेरिंग प्रोस्पेक्ट्स वह (RHP) प्रारंभिक रजिस्ट्रेशन डॉक्यूमेंट होता है, जिसे सेबी के साथ फाइल किया जाता है। इसमें शेयरों की संख्या या शेयरों की कीमत से जुड़ी जानकारी नहीं रहती है।

किसी आईपीओ में निवेश से पहले आईपीओ लाने वाली कंपनी, उसका बैकग्राउंड, उसकी वित्तीय स्थिति औल भविष्य की उसकी योजनाओं से जुड़ी पहलुओं के बारे में जरूर जान लें।

आईपीओ में निवेश से पहले हमेशा निवेश की रणनीति (investment strategy) बनाएं।

ओवरसब्सक्राइव्ड (oversubscribed)आईपीओ को कैसे हासिल करें:

कई आईपीओ के मामले में आईपीओ लाने वाली कंपनी को आईपीओ के तहत जितने शेयर बिक्री के लिए जारी किये जाते हैं, उससे कई गुना ज्यादा निवेशकों का आवेदन मिलता है। इसे ओवरसब्सक्रिप्शन कहा जाता है। ऐसी स्थिति में सभी आवेदकों को आईपीओ नहीं मिलता है। हालांकि, कुछ रणनीति अपनाकर आप ऐसे आईपीओ को भी हासिल कर सकते हैं। जैसे- ज्यादा लॉट में बोली लगाने से बचें, जल्दी से आईपीओ के लिए आवेदन कर दें, हमेशा कट-ऑफ मूल्य पर बोली लगाएं, एक से अधिक डीमैट खाते से आवेदन करें, डीमैट खाते के बजाय एएसबीए के जरिये बोली लगाएं, आईपीओ लाने वाली कंपनी की लिस्टेड मूल कंपनी या उसकी सहयोगी कंपनी का शेयर पहले खरीद लें अगर कोई हो तो।

आईपीओ में कैसे निवेश करें:

-शेयर मार्केट, राइट्स इश्यू, आईपीओ, एफपीओ में निवेश करने के लिए सेविंग्स अकाउंट के अलावा ट्रेडिंग और डीमैट अकाउंट होने चाहिए।

-सेबी रजिस्टर्ड शेयर ब्रोकर्स के पास ट्रेडिंग और डीमैट अकाउंट खुलवाएं, हालांकि सेविंग्स अकाउंट बैंक के पास खुलवा सकते हैं।

-कई शेयर ब्रोकर्स तीनों अकाउंट की सुविधा देते हैं। 

-डीमैट अकाउंट के जरिये किसी भी आईपीओ में निवेश किया जाता है।

-निवेशकों के डीमैट अकाउंट में ही आईपीओ से संबंधित फॉर्म मिलेगा, जिसे ऑनलाइनभरना होगा।

– आईपीओ के संबंध में जानकारी के लिए अपने शेयर ब्रोकर से बात करें। 

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